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 वर्तमान युग में संभावनाएं उभरी हैं, विज्ञान ने चहुदिश प्रगति की है और तकनीकी विकास के चलते मानव जीवन प्रभावित हुआ है। मौजूदा समय में मानव-समाज एक नई चुनौती का सामन कर रहा है। जिन उपकरणों और व्यवस्थाओं ने मानव का जीवन सुगम बनाया है उन्हीं की जीवन में अनावश्यक ताक-झांक के कारण आज का मनुष्य आक्रांत अनुभव कर रहा है। ये बातें मदरहुड़ विश्वविद्यालय, रूड़की के कुलपति प्रो0 (डाॅ0) नरेन्द्र शर्मा ने कही। वे आज विश्वविद्यालय के विधि संकाय द्वारा आयोजित “चैलेंजस इन प्रेजेण्ट एरा टू मटेरियलाईज द हयूमन राइट्स इन इण्ड़िया” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को अध्यक्ष के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि समाज के समक्ष आज की उपस्थित समस्या का विधि समाधान उपलब्ध हैं हमारा संविधान दृढ़तापूर्वक विशिष्ट मानवीय मौलिक अधिकारों की रक्षा के प्रावधान करता है और हमारा प्रशासन उन व्यवस्थाओं का सफलतापूर्वक संचालन भी करता है। उन्होंने मानव अधिकारों की घटनाओं संक्रमणकाल का परिणाम बताते हुए विद्वत समाज से अपेक्षा व्यक्त की कि वे गठन विमर्श के माध्यम से इन चुनौतियों का विश्लेषण  करेंगे तथा इनके समाधान की एक राह देश को उपलब्ध कराऐंगे। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि बाकी विश्व में उपस्थित चुनौतियों तो ज्यादा गंभीर है परंतु सनातन भारतीय संस्कृति की अन्तर्निहित प्रकृति के कारण से ही यह चुनौती भारत में उतनी विकराल नहीं है।
डाक्टर गीता खन्ना, अध्यक्ष, राज्य बाल-अधिकार संरक्षण आयोग, उत्तराखण्ड़, ने मुख्य अतिथि के रूप में सारगर्भित संबोधन में मानवाधिकारों के संरक्षण में विश्व में व्याप्त सांस्कृतिक विविधिताओं की महती भूमिका का परिचय दिया। उन्होंने भारत की लंबी सांस्कृतिक विरासत का परिचय दिया जहाॅ चींटी जैसे लघु जीवन के आहार और आश्रय को भी प्रमुखता दी जाती हैं उन्होने कहा कि हम अपने भरत भूमि के अत्यंत कृतज्ञ है जिसने हम सभी के जीवन को कठिनाईयों से बनाकर सपोक्षित करती है, और दुनिया में मानव जीवन के समक्ष उपस्थित अन्यान्य प्राकृतिक दुश्वारियों से हमारी रक्षा करती है। इसी कृपा के बदले हमारी संस्कृति ने प्रकृति को पूज्य बना दिया। उन्होंने भारत में मानवाधिकारों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को वर्तमान सांस्कृति संक्रमण की उपज बताया और इस बात को रेखांकित किया यह दौर हमारे सामने एक लंबे समय के विदेशी आक्रमणों और दासता के परिणामस्वरूप उपस्थित हुआ है।
मुख्य वक्ता प्रो0 (डाॅ0) ए0के0 भट्ट्, निदेशक, एमिटी लाॅ स्कूल, एमिटी विश्वविद्यालय, हरियाणा ने मानव अधिकार की रक्षा के लिए हमारे संविधान की भूमिका का परिचय कराया। उन्होंने हमारे संविधान के भाग 3 भाग चार के प्रावधानों को मानवाधिकारों की रक्षा के उपायों पर मील का पत्थर बताया। संविधान निर्मातओं की अंतर्दृष्टि का उल्लेख करते हुए प्रो0 भट्ट् ने कहा कि वे सभी भविष्य दृष्टा लोग थे और उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों को इस प्रकार गढ़ा जिससे कि भविष्य की समस्याओं का समाधान ढंूढ़ना सहज हो सके। उन्होंने इस लक्ष्य की प्राप्ति में भारतीय न्यायपालिका को संविधान प्रदत्त शक्ति को रेखांकित किया और साथ ही साथ मानवाधिकारों की रक्षा में उसके योगदान से सत्र को अवगत भी कराया। उन्होंने कहा कि भाग-3 और भाग-4 में संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के उपयोग के द्वारा भारतीय न्यायापालिका ने मानव अधिकारों की रक्षा के अनेक उन्नत शिखरों को स्पर्श किया है। यद्यपि कि वर्तमान की चुनौतियों को भी गंभीर कहा जा सकता है परंतु प्रो0 भट्ट्, ने यह आशा व्यक्त की कि हमारा संवैधानिक तंत्र इससे निपटने में निश्चित की सफल रहेगा।
विशिष्ट अतिथि श्री प्रेम सिंह बिष्ट (सेवानिवृत) आई0पी0एस0 अधिकारी ने अपने पुलिस सेवा के दिनों के व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर मानवाधिकारों के संरक्षण में सामने आने वाली चुनौतियों का विस्तृत ब्यौरा दिया। भारत की सांस्कृतिक परंपरा का उल्लेख करते हुए उन्होंने जीवधरियों के साथ ही साथ प्रकृति के संरक्षण की परंपरा को सामने रखा। उन्होंने इस बात को प्रमुख रूप से रेखांकित किया कि विधि द्वारा उपलब्ध कराए गए सभी अधिकारों की रक्षा के लिए सामाजिक सहभागिता की प्रबल आवश्यकता है, जिसके बिना सहभागिता की प्रबल आवश्यकता है, जिसके बिना मानवाधिकारों की रक्षा का पवित्र दायित्व सम्पादित करना संभव नहीं है।
पुलिस की भूमिका में आवश्यक सुधारों के लिए उन्होंने नए विधियों की आवश्यकता बताई। इस क्रम उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों सहित अनेक अंतरर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण संस्थाओं द्वारा वर्तमान में निभाई जा रही भूमिका के ऊपर भी प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का आरंभ मां वीणावादिनी के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्ज्वलन और संगीतमय सरस्वती वंदना के साथ हुआ। विधि संकाय की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया और अतिथि स्वागत भाषण विधि संकाय के अधिष्ठाता प्रो0 (डाॅ0) जयशंकर प्रसाद श्रीवास्तव के द्वारा किया गया।
उद्घाटन सत्र के दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो0 (डाॅ0) अजय भूपेन्द्र जायसवाल, विभागाध्यक्ष, विधि विभाग, वी एस एस डी0 कालेज कानपुर, प्रो0 (डाॅ0) अनिल कुमार दीक्षित, प्रोफेसर, देहरादून लाॅ कालेज, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, देहरादून, डाॅ0 संजय कुमार बरनवाल, प्राचार्य, के0 पी0 लाॅ कालेज, प्रयागराज तथा डा0 बी0 भावना राव, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल आॅफ लाॅ, यू0 पी0 ई0 एस, देहरादून उपस्थित थे। अतिथियों के द्वारा संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन भी इस सत्र में किया गया। उद्घाटन सत्र के उपरांत सेमिनार के दो तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ। इनके दौरान मानवाधिकारों के विविध परिप्रेक्ष्यों पर अकादमिक प्रतिभागियों के द्वारा प्रकाश ड़ाला गया। शोधकर्ताओं ने मानवाधिकारों के संरक्षण के मार्ग में आने वाली चुनौतियो को वर्तमान परिदृश्य में रेखांकित किया। इस दौरान मौजूदा विधि में उपलब्ध समाधान का उल्लेख हुआ। साथ ही साथ विधि की कमियो को रेखांकित करते हुए उपयुक्त सशोधनों का सुझाव भी दिया गया।
उद्घाटन सत्र के दौरान विश्वविद्यालय के समस्त संकायों के अधिष्ठाता और विभागध्यक्ष तथा विधि संकाय के समस्त अध्यापकगण उपस्थित रहें। इस सत्र की व्यवस्था में सहायक अध्यापकगण डाॅ0 सन्दीप कुमार, श्रीमति व्यंजना सैनी, श्रीमति रेनू तोमर, सुश्री अनिंदिता चटर्जी, सुश्री आयुषी वशिष्ठ, तथा सुश्री आशी श्रीवास्तव का विशेष योगदान रहा।
कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य सुश्री श्रीतु आनन्द द्वारा किया गया।